कनाडा की भूली हुई त्रासदी के चालीस साल बाद: एयर इंडिया फ्लाइट 182 की यादें

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By News Room 15 Min Read

मॉन्ट्रियल में अपने कार्यालय के अंदर, महेश शर्मा कुछ महत्वपूर्ण कागजात और दस्तावेजों से घिरे हुए थे। उन्होंने अपनी लकड़ी की मेज के ऊपर रखे एक पारदर्शी प्लास्टिक लिफाफे को धीरे से खोला।

शर्मा ने कहा, “उन्होंने मुझे जो कुछ भी दिया, मैंने उसे अंदर रख दिया। उन्होंने मुझे ऐसे ही दिया। मैंने उसके अंदर क्या था, ये देखने के लिए, उसे नहीं खोला।” `

बैग में उनकी मृतक बेटियों के कपड़े और उनका निजी सामान रखा गया था। उनकी दो बेटियाँ संध्या और स्वाति, पत्नी उमा और उनकी सास शकुंतला 40 साल पहले एयर इंडिया बम विस्फोट में मारे गए थे। उनके परिवार के चार सदस्य गर्मी की छुट्टियों में भारत जा रहे थे।

महेश ने उस सामान को दिखाते हुए बतलाया, “उनके शवों पर नंबर लगे थे। मेरी छोटी बेटी के लिए ‘25’ है। और उन्होंने अपना हाथ दूसरे प्लास्टिक बैग को छूने के लिए बढ़ाते हुए कहा, “यह ‘103’ है, मेरी दूसरी बेटी के लिए।”

महेश शर्मा एक पारदर्शी प्लास्टिक बैग खोलते हैं, जिसमें फ्लाइट 182 में सवार उनकी मृत बेटी का सामान दिखाई देता है।)

23 जून 1985 को आयरलैंड के तट से कुछ दूर अटलांटिक महासागर के ऊपर एयर इंडिया फ़्लाइट 182 के अंदर रखा गया बम फट गया, जिससे उसमें सवार सभी 329 लोग मारे गए। यह विमान टोरंटो से भारत जा रहा था, जिसमें ज़्यादातर कनाडियन यात्री सवार थे। इसके साथ ही जापान के नारिता अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर एक और बम विस्फोट हुआ जिसमें दो बैगेज हैंडलर तुरंत मारे गए।

विमान में सवार 268 यात्री पूर्वी भारतीय मूल के कनाडाई नागरिक थे। लगभग एक तिहाई यात्री बच्चे थे, जिन्होंने अभी-अभी अपना स्कूल वर्ष पूरा किया था, और परिवार के साथ गर्मी की छुट्टियों में यात्रा करने निकले थे।

मरने वाले कनाडाई व्यक्तियों में डॉक्टर, नर्स, शिक्षाविद, इंजीनियर और वैज्ञानिक शामिल थे। इनमें 43 वर्षीय उमा भी शामिल थीं, जो प्राणीशास्त्र यानि जूलॉजी में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त एक निपुण शोधकर्ता थीं। वह अपनी 66 वर्षीय माँ शकुंतला, जो भारत में एक हाई-स्कूल की उप-प्रधानाचार्य थीं, और अपनी बेटियों के साथ यात्रा कर रही थीं। संध्या, 14 वर्षीय लड़की थी जो प्रतिभावान होने के लिए जानी जाती थी। उसकी 11 वर्षीय बहन स्वाति ने इलेक्ट्रिकल इंजीनियर बनने की योजना बनाई थी।`

महेश शर्मा ने कहा कि उन्होंने सोचा है कि जिस दिन वे मरेंगे, उनकी अस्थियां मृतक बेटियों के कपड़ों को साथ गंगा में विसर्जित की जाएँ। इसके पीछे शर्मा का कोई तार्किक कारण नहीं है। यह उनकी एक भावना है।

बम विस्फोट के कुछ समय बाद पीड़ितों के परिवार अपने प्रियजनों के शवों की पहचान करने के लिए आयरलैंड गए थे। लेकिन अधिकारियों को समुद्र से केवल 132 शव ही मिले। उन 197 शवों में उमा का शव भी शामिल था जो कभी नहीं मिला और हमेशा के लिए समुद्र में खो गया।

महेश ने बतलाया कि उनका भाई उनके साथ था। उसने कहा, ‘महेश, शवों को न देखना ही बेहतर है। तुम्हें उन्हें वैसे ही याद रखना चाहिए जैसे तुमने उन्हें आखिरी बार देखा था।’ महेश ने आगे कहा, “मुझे लगता है कि यह एक अच्छा विचार था। अब मैं उन्हें वैसे ही याद रखता हूँ जैसे मैंने उन्हें आखिरी बार देखा था।”

महेश ने फिर अपनी जेब से अपना बटुआ निकाला। उस में से उन्होंने उमा, शकुंतला, संध्या और स्वाति की खींची हुई एक तस्वीर दिखाई जिसे वे हमेशा अपने साथ रखते हैं। यह आखिरी बार था जब महेश ने अपने परिवार को एक साथ देखा था।

उन्होंने बताया “इन तस्वीरों कि वजह से मेरी दो बेटियों के शवों की पहचान करने में मदद मिली।”

एयर इंडिया बम विस्फोट को ‘भारतीय त्रासदी’ बताकर खारिज किया गया

एयर इंडिया फ्लाइट 182 पर बम विस्फोट कनाडा के इतिहास में सबसे बड़ा सामूहिक हत्याकांड है। यह एक आतंकवादी हमला था जिसकी योजना कनाडा में ही बनाई गई और उसे यहीं अंजाम दिया गया। लेकिन मार्च में सिटीन्यूज-लेजे द्वारा किये गये सर्वेक्षण में पाया गया कि अधिकांश कनाडाई इस त्रासदी से परिचित नहीं हैं।

फ्लाइट 182 में सवार ज़्यादातर यात्री कनाडाई थे, परन्तु पीड़ितों के परिवारों का मानना है कि सरकार उन्हें कैनेडियन देखने में विफल रही।

मीरा कचरू जिन्होंने एयर इंडिया बम विस्फोट में अपनी दादी मोहन रानी कचरू को खो दिया था, उसने कहा, “यह वास्तव में कैनेडियन पहचान के विचार पर सवाल है।” “राजनीतिक स्तर पर, कनाडाई नागरिकों, कनाडाई बच्चों के नुकसान को भी भारतीय त्रासदी के रूप में खारिज कर दिया गया।”

उन्होंने आगे कहा “यह वास्तव में कनाडा में आप्रवासी समुदाय और यहाँ आ कर बसने वाले समुदायों के बीच के तनाव को उजागर करता है।”

मीरा सास्काटून में अपने घर पर, अपनी पारिवारिक फोटो एलबम के पन्ने पलटती हुई पुराने दिनों को यादें ताज़ा करती हैं। सोफे पर बैठे उसके माता-पिता उसे अपनी दिवंगत दादी की तस्वीरों की ओर इशारा करते हुए देखते हैं। तस्वीरों में मोहन और छोटी मीरा दिखाई दे रहे हैं और वह अपनी दादी की यादों को ताज़ा करती हुईं कुछ किस्से सुनाती हैं।

DESCRIPTION: मीरा अपने माता-पिता के साथ एक पारिवारिक फोटो एल्बम के पन्ने पलट रही है।)
मीरा अपने माता-पिता के साथ एक पारिवारिक फोटो एल्बम के पन्ने पलट रही है।)

“जब वह कनाडा आई, तो उन्हें पैंट पहनना बहुत पसंद था, और मेरी माँ उनके लिए ड्रेस बनाती थी। वह ज़्यादातर समय पश्चिमी कपड़े पहनती थी, और उन्हें ऐसा करना बहुत पसंद था।”

मोहन के परिवार ने कहा कि उन्हें कनाडा में नई आजादी मिली, वह सांस्कृतिक मापदंडों से बंधी हुई महसूस नहीं करती और जल्दी ही कनाडाई जीवन में ढल गई।

ਮੋਹਨ ਰਾਣੀ ਦੀ ਇੱਕ ਫੋਟੋ ਵਿੱਚ ਉਹ ਇੱਕ ਕਿਤਾਬਾਂ ਦੀ ਅਲਮਾਰੀ ਦੇ ਕੋਲ ਸੋਫੇ ਤੇ ਬੈਠੇ ਹੋਏ ਬੁਣਾਈ ਕਰਦੇ ਦਿਖਾਈ ਦੇ ਰਹੇ ਹਨ।
मोहन की एक तस्वीर में वह किताबों की अलमारी के पास सोफे पर बैठी बुनाई करती हुई दिखाई दे रही हैं।)

परिवार ने बताया कि मोहन भारत जाने को उत्सुक थी और सुरक्षित महसूस कर रही थी। वह घर जा कर अपने जीवन में कनाडा आने के बाद आए बदलावों को दिखाना चाहती थीं।

कनाडा सरकार से समर्थन का अभाव

डॉ. बल गुप्ता जब अपनी पत्नी रामवती के शव की पहचान करने आयरलैंड के कॉर्क पहुंचे, तो उन्हें कनाडा सरकार की अनुपस्थिति का आभास हुआ।

डॉ. गुप्ता ने कहा, “अस्पताल में आयरिश सरकार, ब्रिटिश सरकार, अमेरिकी सरकार और भारतीय सरकार के प्रतिनिधि मौजूद थे। अस्पताल में कनाडा सरकार का कोई प्रतिनिधि मौजूद नहीं था।”

डॉ. गुप्ता जिन्होंने 1985 से 2005 तक एयर इंडिया पीड़ित परिवार संगठन (AIVFA) के समन्वयक के रूप में काम किया। उन्होंने कहा कि कनाडा सरकार ने बम विस्फोट को कनाडा की त्रासदी नहीं माना।

गुप्ता ने बताया कि उस समय, वह कुछ गुस्से में आ गये थे और शायद असंसदीय भाषा का प्रयोग कर बैठे थे। अगली सुबह, कनाडाई उच्चायोग से एक कनाडाई प्रतिनिधि वहाँ आ पहुंचे थे।

उन्होंने कहा, “रामवती ने भारत के लिए परिवार से पहले की उड़ान पकड़ ली थी, ताकि वह अपने परिवार के बाकी सदस्यों के आने से पहले अपने माता-पिता के साथ दो अतिरिक्त सप्ताह बिता सके।” डॉ. गुप्ता ने अपनी पत्नी को खुशमिजाज, प्यार करने वाली और परिवार को अहमियत देने वाली बताया।

37 ਸਾਲਾ ਰਾਮਵਤੀ ਗੁਪਤਾ ਦੀ ਫੋਟੋ।
37 वर्षीय रामवती गुप्ता की तस्वीर।)

पीड़त परिवार के सदस्यों को महसूस हुआ कि फैडरल सरकार की शुरुआती प्रतिक्रिया में देरी हुई। बम धमाकों का मुकदमा करीब दो दशक बाद चला, जिसके कुछ समय बाद मृतकों की सार्वजनिक जांच हुई।

सुशील गुप्ता ने कहा, “मैंने अपनी माँ को खो दिया और इस बात को कोई मान्यता नहीं मिली। न तो सरकारी संस्थानों ने कोई मान्यता दी, न ही हमारे निर्वाचित अधिकारियों की ओर से कोई मान्यता आयी।” वह सिर्फ़ 12 साल का था जब उसकी माँ बम विस्फोट में मारी गई।

कनाडा के इतिहास की सबसे लंबी और सबसे महंगी जांच

बम विस्फोट के लगभग 18 साल बाद यह मुकदमा शुरू हुआ और यह कनाडा के इतिहास की सबसे लंबी और सबसे महंगी जांच साबित हुई।

मीरा ने कहा, “इतना सब कुछ एक यां दो व्यकितयों को बरी कर देने के लिए और यह बहुत निराशाजनक है।”

दोनों आरोपियों, रिपुदमन सिंह मलिक और अजायब सिंह बागड़ी को 2005 में दोषी नहीं पाया गया था। मलिक की बाद में 2022 में ब्रिटिश कोलंबिया के सरी में उनके व्यवसाय के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई।

मीरा ने आगे कहा, “कनाडा में राजनीतिक नेतृत्व के बीच भी इस बारे में जानकारी की कमी थी … मैं पूरी तरह से हैरान थी कि मैं संसद के एक निर्वाचित सदस्य से अधिक जानती थी।”

इस आतंकवादी हमले की जड़ें सिख चरमपंथी आंदोलन से जुड़ी हैं। यह 1984 में स्वर्ण मंदिर पर हुए हमले और भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद की घटना है।

सिख चरमपंथी तलविंदर सिंह परमार की एयर इंडिया बम विस्फोट के पीछे के “मास्टरमाइंड” के रूप में पहचान हुई थी। वह कनाडा और भारत दोनों में सूचीबद्ध आतंकवादी संगठन बब्बर खालसा का एक मुख्य नेता था। बम विस्फोट के बाद, परमार भारत लौटा और 1992 में वह कथित तौर पर पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारा गया।

एकमात्र दोषी इंद्रजीत सिंह रेयात था, जिसने हत्या के एक मामले और बम बनाने से जुड़े एक आरोप में दोषी होने की बात मानी थी। उसे शुरू में 10 साल की सजा सुनाई गई थी, लेकिन बाद में झूठी गवाही के लिए उसे नौ साल और जेल की सज़ा मिली। पूर्व प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर की सरकार ने 2006 में एयर इंडिया बम विस्फोट के सम्बन्ध में एक सार्वजनिक जांच शुरू की। जांच में आर-सी-एम-पी और सी-एस-आई-एस सहित सरकारी एजेंसियों द्वारा की गई कई गलतियां सामने आयीं और निष्कर्ष निकला कि वे आतंकवादी हमले को रोकने में विफल रहीं।

जांच में कनाडा की राष्ट्रीय सुरक्षा में सुधार, आतंकवाद के मामलों के लिए आपराधिक सुनवाई प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और खुफिया एजेंसियों के बीच सहयोग बढ़ाने की सिफारिश की गई थी।

इंदिरा कलसी कि बहन, अनीता धंजल ने कहा “उन्हें बहुत सारी गलतियाँ मिलीं। ऐसा सवाल उठता है कि उन्होंने उन गलतियों पर कार्रवाई क्यों नहीं की? उन्हें पता था कि चीजें हो रही थीं, चरमपंथियों के साथ स्थितियां बदल रही थीं। “उन्होंने चीजों को होते देखा, और फिर भी उन्होंने उन लोगों को सवालों के घेरे में नहीं लिया।”

इंदिरा गुएल्फ़ विश्वविद्यालय में 21 वर्षीय नर्सिंग की छात्रा थीं, जो पार्ट-टाइम फ़ार्मेसी सहायक के रूप में काम करती थीं। उन्हें निस्वार्थ और देखभाल करने वाली, एक समर्पित बेटी और बहन के रूप में याद किया जाता है।

“हमारे लिए कोई सहारा नहीं था। सभी शोक संतप्त परिवारों के लिए कोई सहारा नहीं था। हम बस अकेले महसूस करते थे। हम अलग-थलग महसूस करते थे।”

21 ਸਾਲਾ ਇੰਦਰਾ ਕਲਸੀ ਦੀ ਫੋਟੋ, ਜੋ ਫਲਾਈਟ 182 'ਤੇ ਸਵਾਰ ਸੀ।
21 वर्षीय इंदिरा कलसी की तस्वीर, जो फ्लाइट 182 में सवार थीं।)

एयर इंडिया फ्लाइट 182 बम विस्फोट को 40 साल बीत चुके हैं

आतंकवाद के पीड़ितों की याद में राष्ट्रीय दिवस 23 जून को मनाया जाता है। फ्लाइट 182 में सवार 329 पीड़ितों की पूरी सूची यहाँ पाई जा सकती है, जिसका उद्देश्य उनकी पृष्ठभूमि की पहचान करना है।

जहाँ कई परिवारों ने कहा कि उन्होंने न्याय की उम्मीद खो दी है, वहीं वे कनाडाई सरकार और उसकी एजेंसियों से अधिक सतर्क रहने की उम्मीद कर रहे हैं ताकि वे भविष्य में ऐसी त्रासदियों को दोहराने से रोक सकें।

सुशील ने कहा, “हम उन सभी नकारात्मक घटनाओं, दर्दनाक अनुभवों को उन लोगों को बता सकते हैं, जिनके पास कनाडाई लोगों की सेवा और सुरक्षा करने की जिम्मेदारी और जनादेश है, तांकि कि वे इससे सीखें।”

ओमनी न्यूज़ पंजाबी, इसी सम्बन्ध में एक विशेष कार्यक्रम प्रसारित करेगा जिसमें इस त्रासदी पर रौशनी डाली गयी है कि कैसे कनाडा के सबसे बड़े आतंकवादी हमले को अनदेखा किया गया, जबकि परिवार न्याय, समापन और इस दर्द से उभरने के लिए कैसे एकजुट हो रहे हैं।

एयर इंडिया फ्लाइट 182 के विस्मृत कैनेडियन

ओंटेरियो, ब्रिटिश कोलंबिया और अल्बर्टा में रिपीट प्रसारण

  • मंगलवार, 17 जून दोपहर 12:00 बजे
  • बुधवार, 18 जून शाम 6:30 बजे
  • रविवार, 22 जून, शाम 7:30 बजे
  • सोमवार, 23 जून शाम 8:30 बजे
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